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Friday, July 13, 2012

रजिनैतिक चुनाव

चुनाव के लिए राजनीति हो या चुनाव कि राजनीति, चुनाव ही वो प्रक्रिया है जो  एक नेता और उसके दल का भविष्य तक करती है | तथापि एक परिपक्य नेता हमेशा सही चैय्नात्मिकता पर जोर देता है | राजनीति मैं, सही-गलत का विश्लेषण करने  से ज्यादा  महत्वपूर्ण यह है कि वो सही या गलत निर्णय  किस वक़्त पर लिये गए है | सही समय पर लिया गया गलत निर्णय भी काफी अछे परिणाम दे सकता है वरन गलत समय पर लिया गया सही निर्णय भी कभी कभी काफी विध्वंसक साबित हो सकता  है | अगर हम हाल के दिनों मैं बिहार के पृष्टभूमि पर हुए राजनैतिक घटनाक्रम पर धयान दें तो हम पाएंगे कि जिस प्रकार बिहार मैं वर्तमान समय पर सत्तारूढ़ मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने निर्णय लेने कि जिस चयन प्रक्रिया का चुनाव किया है वो  कई  प्रकार से देश के सभी मौजूदा राजनैतिक समीकरणों को चुनौती दे रही है | हमारे देश के रजितैतिक परिपेक्ष मैं एक नया अध्याय जुड़ रहा है | यहाँ जनता दल (U) जो की कुछ समय पहले तक काफी छोटे स्तर की पार्टी हुआ करती थी, आज एक सबसे प्रमुख सक्ति केंद्र बन कर उभरी है जो की आने वाले दिनों मैं होने वाले लोक सभा चुनाव मैं ना केवल सरकार गठन की प्रक्रिया मैं बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाहन करेगी वरन काफी हद तक बनने वाली सरकार के भाग्य का फैसला भी करेगी |

 

अगर ताज़ा खबरों के और रुख करे तो राष्ट्रपति चुनाव के लिए प्रणव दा के उमीदवारी को ले कर भारतीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) मैं हो रही ताना तानी के बाद अब उपराष्ट्रपति चुनाव का मामला गरमाया हुआ है | जहा भारतीय जनता पार्टी मैं हामिद अंसारी की उम्मीदवारी को लेकर सहमति बनती नहीं दिख रही वहीँ जनता दल (U) का हामिद अंसारी को समर्थन देनी की बात कहना, गठबंधन मैं बढ़ रही दरार की और इशारा करता है | जिस प्रकार से JDU पहले नरेन्द्र मोदी के सवाल पर बिफरी, फिर या तो राष्ट्रपति के लिए प्रणव दा का मामला हो या अब हामिद अंसारी का, कुछ ना कुछ तो पक रहा है नितीश कुमार के दिमाग के अन्दर | अगर हल के घटनाक्रम को गौर से देखे तो एक बात तो साफ है की JDU, भजपा को ये बता देना चाहती है की अब हालत पहले वाले नहीं रहे जहा निर्णय लेने का अधिकार भाजपा के पास हुआ करता था आज परिस्थित्या बदल चुकी है और जनता का अधिदेश उनकी तरफ है और वो भाजपा के समर्थन के बिना भी बिहार मैं सरकार बनाये रखने का सामर्थ्ये रखती है, और उनके पास खोने को फ़िलहाल ज्यादा कुछ नहीं है और वो अभी अधिक से अधिक जोखिम उठाने की क्षमता रखते है | 


 अगर हम NDA के टूटने पर बिहार मैं JDU के विकल्पों पर गौर करे तो हम  पाते  है कि भाजपा के अलग हो जाने पर JDU को सरकार को बचने के लिए  मात्र 6-7 सीटो कि अवाशाक्ता पड़ेगी जो कि वो आराम से निर्दय MLAs से पूरा कर सकती है, इसके अलावा बुरे परिस्थितियो मैं अगर अंतरिम चुनाव कि नौबत भी आती है तो भी पूरी संभावना है कि  JDU जनाधार जुटाने मैं सक्षम  होगीक्यूकि बिहार की जनता सिर्फ नितीश कुमार को पहचानती है ना कि भाजपा या जनता दल (U) को | इसके अलावा भाजपा के अलग हो जाने पर दलित, खुद को सेकुलर कहने वाले तथा मुसलमानों इत्यादि का एक बड़ा महकमा नितीश के साथ हो जायेगा जो कि BJP के अलग होने वाली क्षति कि लगभग भरपाई कर देगा | इसके अलावा अगर और जरुरत पड़ी तो कांग्रेस या राम विलास पासवान की लोक जनसक्ति पार्टी के साथ भी एक नया गठबंधन संभव है, जो कि भाजपा के अलग होने से स्वतः जदू के पक्ष मैं हो जायेंगे | तो हम ये मान सकते है की JDU हर तरह  से अपने आप को बिहार की राजनीति मैं सुरक्षित रखने का सामर्थ्ये रखती है, तो ऐसे स्थिति मैं JDU मैं जोखिम लेने की प्रवृति का आना सहज है | परन्तु JDU  मैं आये इसे बदलाव को अगर हम राजनैतिक दृष्टिकोण से देखें तो हम पाएंगे कि इन घटनाओ के पीछे कई और रजिनैतिक मकसद छुपे हुए है | 


इनमें से सबसे महत्वपूर्ण मकसद ये हो सकता है कि JDU बिहार पर एकाधिकार स्थापित करना चाहती हो | जिस तरह से हल के दिनों मैं पश्चिम बंगाल और उत्तरप्रदेश मैं क्रमशः तृणमूल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने अपने बल पर सरकार बना कर जो उदहारण प्रस्तुत किया है तथा नितीश कुमार का जो जनाधार बिहार मैं है, उस देखते हुए, अगर JDU बिना गठबंधन के चुनाव लडती है तो ऐसी स्थिति मैं भी  इसका पूर्ण बहुमत  को हासिल कर पाना कोई बड़ी  बात नहीं होगी | दूसरी चीज ये हो सकती है कि 2014 मैं होने वाले लोकसभा चुनाव मैं JDU भाजपा के साथ मिल कर चुनाव नहीं लड़ना चाहती हो जैसे कि बिहार  (40) लोकसभा सीटो के हिसाब से देश का पांचवा सबसे बड़ा राज्य है, और पिछले लोकसभा चुनाव मैं JDU 20(+12) सीटो के साथ समाजवादी 23(-13) तथा बहुजन समाजवादी पार्टी 21(+2) के बाद तीसरी सबसे बड़ी क्षेत्रीय पार्टी बन कर उभरी थी, वो भी तब जब उसने चुनाव भाजपा के साथ मिल कर लड़ा था और भाजपा बिहार मैं 12 सीटे सुरक्षित करने मैं सक्षम हुई थी| अगर हम केवल बिहार कि बात करे तो बिहार मैं केवल नितीश का जनाधार है और अगर दोनों पार्टिया अलग अलग चुनाव लडती है तो ये लगभग तय है कि JDU आराम से 25-30 सीटे सुरक्षित करने मैं कामियाब हो जाएगी और शायद देश कि सबसे बड़ी क्षेत्रीय पार्टी बन कर उभरे | जहा एक तरफ कांग्रेस सरकार हर तरफ से घिरी हुई है चाहे वो महगाई का मामला हो, अर्थव्यवस्था क़ी बुरी हालत या भ्रष्टाचार का मामला वहीँ दूसरी तरफ भाजपा जो क़ी अटल के जाने के बाद नेतृत्व क़ी कमी क़ी समस्या हो या धर्मनिरपेक्षता का मामला रहे इसके लिए भी रहें कभी आसान नहीं रही है, दोनों ही खेमे मैं किसी कि भी मुकिले कम होने का नाम नहीं ले रहीं है| जहाँ कोई भी सरकार पूर्ण बहुमत लाने क़ी स्थिति मैं  नहीं दिख रही है, ऐसे में सबसे ज़्यादा फायदा JDU, सपा, बसपा, तृणमूल जैसी पार्टियो को मिलेगा जो मिल कर किसी कि भी सरकार को बनाने या गिराने क़ी हालत मैं होंगे | 

अगर हम अन्य विकल्पों पर गौर करे तो हम पाएंगे की अगर 2014 से पहले अगर हालत काफी बिगर जाते है और NDA गठबंधन टूट जाता है तो ऐसे स्थिति मैं एक शक्तिशाली तीसरा मौर्चा सामने आ सकता है वैसे तीसरे मोर्चे क़ि सरकार बना पाने की क्षमता काफी क्षीण तथा संदेहपूर्ण है, परन्तु राजनीति पूरी तरह से संभावनाओ तथा असंभावनाओ का खेल है, इसीलिए सही समय आने से पहले कुछ भी कह पाना मुशकिल है |